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________________ अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनी श्रीअमोलख ऋषिजी. आउयनिबंधति,पावकम्मकारी बंधवजण सयणमित्ति परिवजिया आणिटाभवंति, णादिज्ज दुविणीया, कुट्ठापासण, कुसेज कुभोयणा, असुइणो कुसंघयण, कुप्पमाणा, कुमंठिया, कुरूवा, बहुँ कोहमाण मायालोमा, बहुमोहा धम्मस्सण सम्मत्तपन्भट्ठा दारिदोवदवाभिभूया, निच्चंपरक्कम्म कारिणो, जीवणत्थरहिया, किवणा परपिंडतक्किका, दुक्खल. हाहाग अरसविरस तुच्छ कयात्थपुगपरस्सपत्थंता, रिद्धिसकार भोयणविसेस समुदयविहिं बिंदिता, अम्पककंयतंचपरिवयंता इह पुरे करडाई कम्माइ, पावगाई अपनी उदर पूरणा करने वाले, झरे को देख कर तरसने वाले, ऋद्धि संपदा सत्कार भोजन इम की सदैव आशा करते पाकारन वाले कि अहो देव ! मैं न तेग क्या अपराध किया जो हम को ऐसा दुःखी बनायो अनेक समुद्र में डूबने वाले, परस्पर क्लेश करने वाले, अपना आत्मा की स्वयमेव निसा करने वाले और खराब बचन बोलने वाले होते हैं, पूर्व कृत पापकर्म से चित्तमें जलते हुए। दूसों से पराभव पाय हुए. सत्व रहित बने हुए. प्रत्येक से लोभ पाये हुए, चित्रादि शिल्प, धनुर्विद्यादि कला और मतमतांतर के शास्त्र से वर्जित, पशुभूत, जन्म मात्र पूर्ण करने वाले अ.तीत वाले, सदैव नीच कर्म से उपजीविका करने वाले, लोकों में निंदनीय मोहोदय से उत्पन्न हुइ भलाषा पूर्ण करने में असमर्थ, बहु न बातों से निराश रहने वाले, आशा के पिपापु, जिन के प्राण * पकाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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