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________________ + दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम-आश्रयद्वार 48+ वासा पावाल, कामरति राग दोस बंधणं बहुविह संकष्प विउल दगरयरबंधक र, मेहमहावच, भोगभममाण गुप्पमाणुच्छलंत बहुगब्भव स पच्चोणियत्त पागि पविय वसण समावण्ण रुण्ण चंडमास्य समाहया मणुण्णवीची वाकुलियभंग फुटत निट्ठ कल्लोल संकुल जलं पमाद बहुचंडदुट्ठसावय समाहय उद्घायमाणा कपूर धोर विद्धसणस्थ बहुल अण्णाण भमंत मच्छ परिदक्ख अनिहुतिंदियं महामगर और कालुष्यता रूप वायु का वेग उद्धत होता है, अशापिपासा रूप पाताल है, काम, रति, राग और में द्वेष रूप समुद्र का बंधन है, बहुत प्रकार के संकल्प विकल्प रूप पानी की रज हैं, तमस्काप समान ... के अंधकार वत् महा मोहमय अव्रत है, मोगरूप भ्रमरी पडती है, गर्भावास संबंधी उत्पन्न होना यह उपर जाना व नीचे से उछलना है,प्राणी जीवों को पच्छ कच्छादिका शीघ्रता से इधर उधर गमन रूप स्वापद .. हैं, अनेक प्रकार के कष्ट होने से रुदन विलापात रूप पान का संचार हैं, अमनोज्ञ Eभाव से व्याकूल भंगारंग रूप फूटती महा लेहरें हैं, प्रमाद रूप महा प्रचंड नक्रादि जीव हैं, उठते हुए, उछलते हुए और बहुत अज्ञान से भमते हुए मिथ्यात्वी रूप मच्छ हैं, विषय से अनिवृत्त इन्द्रियों रूप मगर है, उन की गति बड़ी होती है. वे क्षोभ पाते, संतापते, नित्य चपल चंचल चलते बलाते अशरण व वंचित उदय कर्म को प्राप्त हुए हैं. वज्र समान पाप वेदता हुआ दुःख विपाक रूप + अदत्त नामक तृतीय अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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