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________________ विप्पिक्खंतादिसोदिर्भि, मरणभयुब्बिग्गा, आधायण, पडिदुवार संपाविया, // 10 // अधण्णा. सूलग्गविलग्ग भिण्णदेहा, तेयतत्थ कागति, परिकप्पियंगमंगा उलविजंति, रुक्खसालेहि, केइकलणाइ, विलवाणा, अवरचउरंग धणियबद्धा, पव्वयकडगा पमुच्चंते, दुरप्पायबहु विसमपत्थग्सहा, अणेयगयचलण, मलणनिम्मदिया करत, पावकारी, अट्ठारसंखंडियाय कीरात, मुंडपरिसुहिं केइउ खत्त, कोटनासा, उप्पाडियनयणदसणवसणा, जिभिदियाछिया, छिण्णकण्णासरा पणिज्जति छिजतिय, हुवा. कृष्ण दीन, त्राण व शरण रहिन, अनाथ; बंधव रहित, वंधगादि से त्यजाया हुवा, मरण भय से उद्विग्न बना हुवा दशदिशि में दोडता हुवा वध स्थान को प्राप्त हुवा. // 10 // यह पुरुष अधन्य, शूगर पर स्थापन किया हुवा. भिन्न शीर वाग, काटे हुवे अंगोपांग वाला. वृक्ष की शाखा से लटकाये हुए शरीर वाग, विविबाट शब्द करता है. कितनेक चोरों के चारों हाथ पांव के छेदन करते हैं. कितनेक को पर्वत के शिर पर से नीचे पटकते हैं, कितनेक को बहुत दूर ले जाकर विषम स्थान में छांड देते हैं, कित नक को पाषण के प्रहार से मारते हैं, कितने को हाथी के पांवसे बांधकर घसीटते हैं. कितनेक के शरीर (r) का मन करते हैं, कितनेक को अठारह स्थान में शरीर के खण्ड 2 करते हैं. कितनेक के मस्तक परशु से 1 काटते हैं, कितनेक के नाक कान होठ काटते हैं, कितनेक की आंखों नीकालते हैं, दांत तोडते हैं, और दक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + *प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजा *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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