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________________ R दशमाङ्ग-प्रश्नच्यःकरण सूत्र-प्रथम आश्रद्वार हय जोह भमंत, तुरगआदांममत्त कुंजर परिसंकित जण निव्वुक्काच्छिण्णद्वयभग्ग रहवर नट्ठसिर, करिकलेवरा किंणपडित पहरणा विकिण्णाभरण भूमिभागे, निचंत कबंधपउरं भयंकरवायस परिलतं, गिद्धमंडल भमतं, छ यंधकारं गंभीरे वसुबसुहविकापयव्व पच्चक्खपिओवणं. परम रुद्द बहिण, दप्पवेम रंगं अभि डेति संगाम सकडं परधणंमहंता // अवर पाइकचोरसघासेणावइ चारवंदण पांगढिकाय अडविदेस मूच्छित बनकर भूमपर पड़े हैं. कितनेक भूमिपे लोटते हुए विलाप दीन आलाप कर रहे हैं, इस से वहां का दृश्य करुणाजनक होता है. कितनेक घायल योद्धाओं छूटकर दशो दिशी में भगने लगे अपनी इच्छा से फीरने लग. घोडे तथा मदोन्मत्त कुंजर से डरते हुए लोक भगते हैं, मूल से छोदित की हुइ ध्वजाओ, तूटे हुए प्रधान स्य के मस्तक पडे हुवे हैं. हाथियों के कलेवर इधर उधर पड़े हुए आभूषण, उस भूमिके प्रदेश में इधर उधर नाचते हुए यस्तक रहित शरीर से वह संग्राम स्थान वीरत्व दर्शता है कायरों को बहुत भयंकर दीखता है. गृद्धपक्षी ढंक, काक, इत्यादि मांसाहारी पक्षियों के समुह गगन में पारेभ्रमण करते हैं. इन पक्षियों में ही वहां अंधकार अच्छादित हो। रहा है. जैसे वासुश को वसुदेव काम्पत करते हैं वही शूरवीर राजाओ कम्पित करते हैं. और भी। वह स्थान स्मशान जैसा अत्यत रौद्र, भयंकर, और अन्य लेको के लिये प्रवेश करना बहुत कठिन है. + अदत्त नामक तृतीय अध्ययन H it |
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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