SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिनी / 4. अनुवादक-बालब्रह्मचा ... बहुविह तेणिकहरणबुद्धी, एतेय अण्णेय एवमादी // 3 // परस्स दव्याहिं जे अविरया, 'विपुलबल पग्ग्गिहाय, बहवे रोयाणा, परधर्णमिगिहा, सएव दव्वे असंतुट्टा, परविसए अभिहणति तुट्ठा, परधणस्सकजे, चउरंगसमत्त, बलसमग्गा, निच्छय वरजोह जुद्ध सजिया, अहमहमिति, दप्पिएहिं. सेन्नेहिं संपरिवुडा, पओम सगड सूइचक्क सांगर गरुल बुहादिएहिं अणिएहिं उच्छरता, अभिभूय हणति परधणाई, अपर रण सीस लद्धलक्खा सगामें अतिवयंति सण्णेद्धवह परियर उप्पीलीय, चिंध पटुंगहिया उहपहरणा बुद्धिवाला और ऐसे ही दसरा चोरी करता है // 3 // परधन हरण करने में प्रस्याख्यान रहित, विपुल बळवाला, बहुन राजामो का राजा, अन्य ऋद्धि देखकर अपने भी ऋद्धि होवे कैसा चाहने वाला, अपनी ऋद्धि में असंतोष धाग्न करने वाला, अन्य राजा के अधिकार वाले देश में सन्मुख बनकर घात कग्न वाला, और लूटने वाला, चोरी करता हैं. सदैव परधन हरन में रमण करने वाला, हाथी, घोडे. रथ और पदाति ऐसे सेना के चार विभाग कर के किसी को मारतका निश्चय करे, फीर संग्राप सज्ज करे. संग्राम में मुझे जयश्रीमिलेगा। ऐहा अभियान लाकर सेना का साय रहे वह भी चोरी करने वाला गिना जाता है. पद्य कमल जसे शकटाकार व्यूह चक्राकार ब्यूर, सागर के आकार व्यूह, गरुड के आक र व्यू', इत्यादि प्रकार से सेना का विभाग कर उस में * प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy