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________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी // तृतीय-अदत्त नाम अधर्मद्वारम् // जंबू ! ततियंच अदत्तादान हरहो दह मरण भय कलुस तासण परसंति गभिज लोभमूल काल विसम संसिय अहोत्थिण तण्हा पत्थाणपत्था अकित्तिकरणं अणिज छिद्दमतर, विधुर वसण मग्गण उस्मवमत्त पमत्ता पसुत्त वंचणाक्खिचण घायण पराणिहुय परिणाम तकरजण बहुमयं अकलुणं रायपुरिस रक्खियं, सयासाहुगरहणिज्जं, पियजण, है श्री सुधर्पा स्वामी कहने हैं कि अहो जम्बू ! अब तीसरा आश्रय द्वार अदत्तादान का स्वरूप कहना हूं यह अदत्तादान संत प करने वाला, दाह करने वाला, मृत्यु निवजाने वाला भय उत्पन्न करने वाला, कलुषता करने वाला, बाम उत्पन्न करने वाला, अन्य के धन में गृद्ध बनाने वाला, लोम का मूल, काल-अर्धरात्रि में करने योग्य, पर्वतादि विषम स्थान में परिभ्रमण कराने वाला, अधोगति में ले जाने l वाला, संतुष्ट नहीं कराने वाला, वारंवार अहित कार्य कराने वाला, अकीर्ति कराने वाला, अन्या-दुष्ट जन का कर्तव्य, छिद्र देखन वाला, अपाय का काग्न. उन्मार्ग की गवेषणा कराने वाला, इन्द्र महोत्सवा देक में जपत्त, प्रमादी, और मूते हुवे की गवेषणा करने वाला, पिशुनता का कारन, ठगाइ आक्षेप चित्त विग्रह का कारन, पात का क रन, चपलता का कारन, कषायादिक का अनुपशान्तपना, कुजन को अनुमत, दया रहित कार्य वाला, राज पुरुषों से रक्षित, साधु पुरुषो से निन्दित, प्रियजन में भेद करन *पकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवमहायजीपालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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