________________ * दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम आश्रद्वार +86 * तिरि विनहीं वराग विसभेस, सणस्स "परिजणस्सय नियकम्मजीवियस्सः / रकखणट्टयाए पडिसीसकाई चंडेह, देहह 'सीसोवहारे विविहौसहि मज मस भक्खजण पाणमल्लाणुलेवण पदीव जलिओजलि संगध धूवाचकार पुप्फफल समिद्ध पायच्छित्तेकरह, पाणतिवाय करणेणं बहुविहेण विवरी उप्पाय दुसुमिण. पावसउणं असमगह चरिय अगल निमित्त पडिग्यायहेउ, वित्तिच्छयं करेह मादेह किंचिदाणं सुहहओ सुहछिन्नो मिन्नोति ओवदिसंता एव विविहंकरंति अलियं मणेणंः बायाए तथा जालमील बहल के समय. दुष्ट स्वप्न आने से मानापिता अथवा परिजन के जीवितव्य की रक्षा निमित्त कणक पंड का' मस्तक देव देवी को चझ के, छ.ली के मस्तक का बलि देवो, अनेक प्रकार की औषधि कुंदन, मदिरा पांस का भक्षण करो, अन्नपानी, पुष्पमाल, विलेपन, प्रज्वलित दीपक, उज्म मुगंध धूप, अगर पुष्यफल इत्यादि से देवता की पूजा करो! प्रायश्चित कर शुद्ध होवो. बहुत प्रकार के भूमिकम्प, दूष्ट प्न, अशुभ शकुन, अकल्याण करने वाले दुष्टः क्रूरग्रह, और अंगस्फूरने के लिये किसी की धात कर उन की अजीवका का' छेदन करो, अमुक को खाने मत दो, किसी को दान मत दो, इत्यादि वबन बोलने वाले मृषावादी कहलाते है. और भी पृशावादी का स्वरूप कहते हैं- अच्छा किया कि उसे मारा, अच्छा उस का छेदन किया, उस के टुक मृग नापक द्वितीय अध्ययन 818