________________ पत्र - अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक खेड,कव्वड, संनिवेसह अटविदेसेसु विपुलसीमो, पुप्फाणि फलाणि कंदमूलाई काल पत्ताई गिव्हकरेहसंचयं. परिजणस्सट्टयाए साली, वीही जवाय लुच्चंतु मिलिजंतु उप्पजतुय लहुंच, पविसंतु कोट्ठागारं अप्पमहु कोसगाय हम्मंतु. पोत सत्था सेणाणिजाओ, जाउडमरं घोरावडतुयसंगामा, पवहंतुय सगडवहणाई, उवणयणं चोलगं विवाहो जन्नो, अमुगंमिहोउं दिवसेसु करणेसु मुहुत्तेसु नक्खत्तेसु तिहिम्मिय अजहोउ,एहवणं मुदितं बहु खजपेज कलियं कोतुकविएहावणक संतिकम्माणि कुणह, काटना, तिलादि पीलना, इंट पकाना, वगैरह पापकारी कार्य में मृषा भाषा है. खतमें खड्डा तलाव खुदवाना, प्राम. नगर खेड कर्वट की स्थापना, ग्रामादिक की सीमा करना, पुष्प फल परिपक्व होने से ग्रहण करवाना / स्वजन, परजन व इष्टजन के लिये शाली प्रमुख कटवाना, पसलकर पृथक् करवाना, उफणकर शुद्ध करवाना. स्वच्छ किये पीछे कोष्ट्रादिक में भरवाना, वगैरह भाषा मृषा है. जहाजो साथ सेना तैयार करो, विरोध के स्थान ज ओ, महा संग्राम करो, गाडा वाहन चलाओ, बालक को कला ग्रहण करावो, सुरमुखन करावो, लग्न करो, यज्ञ करो, अच्छे करण मुहूर्त नक्षत्र देख कर स्तनपान करावो, सौभाग्य / कर्म पुवादि लिये वधू को स्नान करावो, प्रमोदवंत वन, बहुत प्रकार के खाद्य पदार्थ, पीने के पदार्थ सहित कौतुक विधान का संस्कार करो, नहावन कराबो, अग्रिहोबादि शांति कर्म करापो, चंद सूर्य ग्रहण में *काशक-राजाबहादुर काला मुखदवसहायजी ज्वालामसविनी*