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________________ 44 + दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रद्वार नविय अस्थि पुरिसाकारो पञ्चक्खाणमवि नत्थि, नवि अस्थि कालमच्चू, अरहंत चक्कवट्टी, बलदेवय, वासुदेवा नत्थि, नेवत्थि केइग्सिओ, धम्माधम्म फलंचनवि अस्थि, किंचिबहुयंच थोवंच तम्हा एवं जाणिऊण जहाफलसु बहु इंदियाणुकुलेसु सम्वविसएमु तं वह, नस्थिकाययि किरियावा, अकिरियावा, एवं भणंति नस्थिक' वादिणो वामलोयवादी, // 3 // इमंपि वीतियं कुदंसणय असम्भभाववादिणो पण्णवेतिमूढा, संभूओ अंडकाओ- लोको, सयंभूणा नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति नहीं है. वैसे ही सिद्धगति भी महीं है. मातपिता नहीं है, पुरुषा.. त्कार नहीं है, प्रत्याख्यान नहीं है, काल मृत्यु भी नहीं है, सब माया है, चक्रवर्ती, बलदेव और वासु-बैं देव भी नहीं है, कोई ऋषि भी नहीं है, धर्माधर्म का फल नहीं है. थोडा या बहुत करने का फल नहीं है. सब व्यर्थ है. ऐमा जानकर और पूर्वोक्त कथन में श्रद्धा रखकर पांचों इन्द्रियों को अनुकूल विषय मुख का अनुभव लेते हुए अपनी इच्छानुसार प्रवृत्ति करो. इस में क्रिया अक्रिया कुछ भी नहीं है. इस सरह है। नास्तिक वामलोकवादी कहते हैं // 3 // अब दसरे असगाव की परूपणा करनेवाले नास्तिकवादी कहते हैं कि अण्डे में से लोक बना हुवा है और ब्रह्म ने इस का निर्माण किया हुवा है. यह भी. असत्य वचन है, प्रम अथवा शंकरने यह संपूर्ण लोक बनाया है यों कितनेक मृषा बोलते हैं, विष्णुपय संपूर्ण जगन् है यों। पृषा नायक द्वितीय अध्यर - -
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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