________________ - +8 देशपाङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र-प्रथम आश्रवद्वार वंचणपरा, चारिय, चट्टयार, नगरगुत्तिय, परिचारक, दुटुवाइय, सूयक, अणबल भणियाय, पुवकालिय, वयणदच्छा, साहसिका, बहुस्सगा, असञ्चा, गारिविया असच्चणावणेहि चित्ता, उच्चछंदा, अणिग्गहा, अगियत, छदेण, मुक्कवायी भवति // अलियाहिं जे अविरिया अवरे सस्थिक वादिणो, वामलोकवादी भगंति, सुगंति, नत्थि जीवो, नजाति इह परेच्च, लोए नाय, किंचिवि फुसइ पुण्ण, पावं, नत्थसुक्कयदुक्कयाणं, पंचमहा भूतियं सरीरं भासंतिहं वागजोगजुत्तं, पंचय दूपरे को ठगने वाले, चारक, मुख मंगल बोलनेवाले, नगर रक्षक कोतवाल, पर स्त्री का सेवन करने वाले, अदत्तग्राही, चूगल, ऋणदेने वाले, व लाने वाले, निर्बल वचनी, दूसर के बोले पाहेले बोलने वाले, दक्षता बताने वाले, साहासक, लूटनेवाले डाकु, साधु पुरुषो का अहित कर्ता, ऋद्धिआदि गर्व करने वाले, झुठा धर्म की स्थापना करने के आभिलाषी, उत्कर्षी, स्वच्छंदाचारी, योग कषाय का निग्रह करने वाले, अनियमित कार्य करने वाले, स्वच्छंदानारी, और बहुत बोलने वाले ये पूर्वोक्त पनुष्य असत्य बोने वाले होते हैं. इन सिवाय और भी जो मृषावादी हैं. उन के नाम बताते हैं, मृषा वाद के व्रत रहित नास्तिक वादी वे असत्य बोलते हैं. वापमार्गी अर्थात् सर्व दर्शन के निन्दक भी मृषा बालते हैं. वे कहते हैं कि बाग नहीं है, कोई इस लोक व पर लोक में नहीं जाता है, कोई पुण्य पाप को + मृषा नापक द्वितीय अध्ययन 4MS Ki |