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________________ प.अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अयोलख ऋपिनी ..." . सम तिव्यदक्खा फरिप्त रसणसंपाउत्ता पत्ता॥२०॥एगिदेिवत्तणं पुढविजलजलणमारुय वणप्फइ सुटुम बादरंच पजत्त मपजत्त पत्तेयसरीर नामं साहारणंच,पत्तेयसरीर जीविएस तत्यवि काल ममंखिजगं भमंति अणंत कालं अणतकाए, फासिदिय भाव संपउत्ता दुक्ख समुदएयं इमं अणिटुं पावांत पुणो 2 तहिं 2 परभवतरुगणगहणं // कोहल कुलिय दालण सलिल मलण खुमण, रंभण, अणलाणिल विविहसत्थघट्टण परोपराभिहण नम रण विराहणाणिय, अकामकाइ परप्पउगोदीरहिय कज्ज पउणेसमान रस और स्पर्श इन्द्रिय संबंधी तीव्र दःख का अनुभव करते हैं // 20 // एकेन्द्रिय में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वाय, वनस्पति, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीरधारी, साधारण शरीरधारी में परिभ्रमण किया + वहां स्पर्शन्द्रिय संबंधि दुःख वारंवार प्राप किया. अब एकेन्द्रिय के दुःख का कथन करते हैं। व प्रकृष्ट सर्व स्थान से अधिक दुःख एक स्थान में कायस्थितिपना से हैं. वृक्षादि गुच्छ, गल्मा एकेन्द्रिय में अगाध दुःख है. पृथ्वी को कोदाली से खोदना, दलना, पानी से मसलना, खंदना, रुधना, अग्नि का संग्रह करना, विविध शस्त्र में संघटन करना, परस्पर घात करना, मत्युकादि में लगाना, विराधा, परिताप उपजाना, निष्पयोजन अन्य के लिये उदीरणा करना, प्रयोजन से प्रेषक, दामाद पथ के x प्रत्येक शरीरी में असंख्यात काल और साधारण शरीरी में अनंत काल * मकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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