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________________ 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + गलजालुच्छिपणाणि पालणविकप्पणाणिय जावजीवंग बंधणाणि पंजर निरोहणाणिय सह निडाडणाणिय, धम्माणि दोहणाणिय कुदंडगल बंधणाणि, वाडेपरिचारणाणिय पंकजलनिमजणाणिय, बारिप्पवेसणाणिय, उवार्यानभग विसमणि बडण, दवग्गिजाल दहणाई एवं ते दुक्खसय संपलित्ता नरगाउ आगया इह - साव सेसकम्मा तिरिक्ख पचिदिएसु पावंति पावकारी कम्माणि, पमायराग दोस बहुसंचियाई. अंतीव अस्साए ककसाइं // 17 // भमरममग मात्थंकादिएसुय, आनि आदि में धमाना, गर्भ ग्रहण निमित्त रुधिरादि नीकालना, गले में बंधन डालना, वाडे में पूर कर रखना, बहुत काल पर्यंत एक स्थान रहना, रुका रहना, इच्छानुसार खान पान रहित, कीचड में धूचना. पानी में डूब जाना, आग्नि में तपाना, धूप में तपना, खदानों में उतरना, विषम पहाडपर चडना, दवान में जलना, डाम देकर जलाना. यो सेंकडों दुःख तिर्यंच योनि में हैं. नरक के दुःख से नीकल कर यहां पुनः दुःख में पड़ता है. तिर्यंच पंचेन्द्रिय में पापकृत कर्मों से वैसे ही प्रमाद और रागद्वेष से बहुत कर्मों का संचय कर अत्यंत अमाता कर्कश वेदना तिर्यंच भोगते हैं + // 17 // चतुरेन्द्रिय में भ्रमर, मच्छर, * काश्क-राजाबहादुर लाला मुखदरमहायजी ज्वाळापस दना * + जलचर के 12 // लाख कोड, स्थलचर के 10 लाख क्रोड, खेचर के 12 लाख क्रोड, उरपर के लाख क्रोड और भुजपर के 9 लाख कोड कुल हैं.
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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