________________ 228 दससु. चेव दिवसेसु उद्दसिजंति एकं तरसु अबिलेसु निरूद्धेसु आउत्त भत्तपाणएणं अंग जहा आयारस्स // इति पण्णवागरण सुत्तं सम्मत् // 11 // * * एक ही श्रुतस्कन्ध और दश अध्ययन, एक ही स्वर से दश दिन में उद्देशना, उस वक्त एकान्तर उपवास करना या आयंबिल करना. या अंत प्रान्त आहार करके उद्देश करना. जैसे आचागंग है तैसे यह भी अंग है. इते मंवर द्वार संपूर्ण. इति प्रश्न व्याकरण सूत्र संपूर्ण हुवा // 11 // * // इति द्वितीय संवर हार संपूर्णम् // 43 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी वालाप्रसादजी* ....... ........ भर .......... // इति दशमाङ्ग // ॥प्रश्नव्याकरण सूत्र समाप्तम् // A .............. वीराब्द-२४४५ श्रावण शुक्ल रविवार 90ROINDIA 11.777TH . HTS 88