________________ - अमोलस ऋषिजी" --- - - अवमाणण, तजण निभंछण दिन्नवयण तासण, उकुविय रुण्णरडिय कंदिय विग्घट्ट रसिय कलुण विलवियाई,अण्णेसुय एवमादीएसु सद्देसु समणुण्णपावएसुनतेसु समणेणं रुसियव्वं नई लियन्वं,ननिंदियन्वं, नखिसियवं,नलिंदियव्वं,नमिंदियध्वं,नवहेयन्वं नदुर्ग डावितियं विलम्भाअप्पाएओ, एवं सोइंदियभावणा भाविओ भवई-अंतरप्पा, मण्णु.. णामण्णुण्ण सुभदुभिराग दोस पाणीहयप्पा साहु मण वयण कायगुत्ते,संवुडे पणिहिदिए चरजधम्म॥१५॥वितियं चक्खुइंदिएण पासियरूवाणि, मणुण्णा भद्दगाई सचित्तावितमी सकाई कटे पं.त्थाय चित्तकम्मे,लेपकम्मे,संलय, दंतकम्मेय पंचहिवण्णेहिं, अणेगसंट्ठाण के और अन्य भी एसे अपनो शब्द, खराब शब्द, पापकारी शब्द सुनकर रोष करे नहीं दीलना / करे नहीं, निंदा करे नहीं, खिसना करे नहीं, कहने वाले का छेदन भेदन वध करे नहीं, दुगंछा होवें वैसा करे नहीं. किसी प्रकार मे अलाभ करे नहीं, यों श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह की भावना भावता हुवा मनोज अमनोज अच्छे बुरे शब्द मे र गदेव का त्याग करता हुवा साधु मन वचन व काया के योगों का गोपन करता हुआ संघर से परिणत इन्द्रिय वाला धर्म में चले. // 15 // दुसरी मापना-चक्षु इन्द्रिय से देखे। हुए मनोज अच्छे रूप मचित्त अचिध, मीश्र, काष्ट के चित्र, बस के चित्र, रंग के चित्र, खही आदि के लेप के चित्र, मिट्टी के पाषाण के, दांत कर्म के, पांचों वर्ण के अनेक प्रकार के संस्थान थाले, गुंथे हुए, * प्रकाशक-राजाबहादुर काला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी / अनुवादक-बालब्रह्मचारी