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________________ - 42 अपडियद्धो,अनिलोव जीवाव अपडिहयगई, // 12 // गमिगामेय एगरायं, नगरेनगरे पंचरायं, इइज्जतेय, जितिदिए, जियपरिमहेय, निब्भए, विउ, सचित्ताचित्त भीसगेहिं दव्वेहिं विरागयंगए, संचयउ विरएमुते लहुए, निरवकंवखे, जीवियाआस मरणभय विप्पमुक्के, निस्सन्निहिं, निव्वणंचरित्तंधीरे कायेण फासयंते सययं, अझप्पज्झण जुत्ते निहुए, एग चरेजधम्मं // 13 // इमंच परिग्गह वेरमण परिरक्खण ठुयाए, पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं, आगमेसिभई, सुद्ध नेयाओयं, 30 वायु अथवा जीव की गति सपान अप्रतिबंध बिहारी होते हैं // 12 // ग्राम में एक रात्रि और नगर में पांच गात्रि रहे. इन्द्रियों को जीते, परिषद को सहे निर्भय, तत्त्वज्ञ, मचित्त, अचित्त और मीश्र यो तीनों प्रकार के द्रव्य से विरक्त रहे, इस के मंचय से निवृत्ति भाव रखे, मुक्त-निर्लोभी, हलके, निरि. च्छक जीवितव्य की आशा व मुत्यु के भय रहित होवे. स्नेह रहित, निरति चार चारित्र वाले होवे,उक्त प्रकार के आचार को काया कर स्पशन करे. आध्यात्म,ध्यान युक्त उपशांत स्वभाबी और राग द्वेष रहित अकेले ही धर्म मार्ग में विचरे // 13 // इस परिग्रह विरमण व्रत की रक्षा के लिये आत्महित करनेवाली, आगामिक काल में है। . 1 यचं रात्रि एक सप्ताह को कही है, जैसे रविवार से दूसरे रविवार पर्यंत एक रात्रि गानी गई है. 42119 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार अर्थ निष्परग्रह नाकपचर अध्ययन,
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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