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________________ 1 दशमाङ्ग मनमाकरण सब-द्वितीय संघरद्वार निक्खिवियव्वंच, गिहियध्वंच, भायण भंडोवहिं उवगरणं एवं से संजए विमुत्ते निस्संगो / / निपरिग्गह निग्गयरुइ निम्ममे निनेहबंधणं सव्व पावविरए।१०। वासी चंदण समाण कप्पो समतिण मणिमुचले कंचणे समे, समेय माणवमाणए, समियरए, समियरागदोसे, समिए 211 समिईसु सम्मट्ठिी समेय जे सबपाणभूयसु सहुसमणे, सुयधारए, उज्जुए, संजए, सुसाहु, सरणं सव्वभूयाणं, सव्वजगवच्छले सच्चभासकेय संसार तेवितेए ससार समुच्छिण्णे, सययं सरणाण पारए पारगेय सव्वेसि समयाणं पवयणमायाहिं ममत्व रहित, स्नेहबंध रहित और सब प्रकार के कर्म से रहित होते हैं. ऐसे साधु के गुन करते हैं. कोई विप्लोले से छोले अथवा कोई चंदन से चर्चे यह दोनों समान है, तृण मणि, कंकर और कांचन समान है। -उन के मान और अपमान में समभाव हैं. पापरूप रज तथा रागद्वेष का उपशम किया है. पांच सामति युक्त, सम्यग्र दृष्टि, सब प्राणी भूतों को आत्मा समान जानने वाले, शास्त्रों के ज्ञाता, सरल स्वभावी, संयमी, सुसाधु, सब जीवों को शरण भून, सब जगज्जीवों की वात्सल्यता करने वाले, सत्य वचन / बोलने वाले, संसार से उत्तार्ण होने वाले, चतुर्तिरूप संसार का छेदन करने वाले. सदैव मृत्यु के परगामी, सब प्रकार के संदेह रहित, आठ प्रवचन माता के सहित, आठ कर्म रूप ग्रंथी, का छेदन करने वाले, आठ मद के मर्दन करने वाले, न्याय में कुशल, मुख दुःख में सम भाव वाले, आभ्यंवर वैसे ही 42 निष्परिग्रह नायक पंचम अध्ययन 48 .
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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