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________________ करण सूत्र द्वितीय संवरद्वार 428 अणियाणे अगारवे अलडे,अमूढे, मण वयण कायगुत्ते // 3 // जो सो वीर वरवयणविरति पवित्थर बहुविह पगारो सम्मत्त विसुद्धबद्धमूलो, धितिकंदो, विणयंवइओ, नियग्गयतेलोक विपुल जसनिचिय पीणपीवर सुजायक्खंधो, पंचमहावय विसालसालो, भावण तयंतझाणा सभजागनाण पल्लवबरंकुरोधरी, बहुगुण कुसुमसमिद्धो, सीलसुगंधो, अणण्हयफलोपुणेाय, मोक्खवर बीयसारो, // मंदरगिरिसिहर जूलियाइव इयस्समोक्खवर मोत्तिमग्गस्त सिहरभूयं संवरवरपायवो मूढना रहित है. वैसे ही पाप कर्म मे मन वचन व काया के योगों का गुप्त करने वाले हैं. // 3 // उक्त गुण संपन्न वीर में पुरुषों ने परिग्रस्से मुक्त होने रूप संवर स्थान को वृक्ष की उपमादी है बह इस प्रकार है-अनेक प्रकार के निर्मल सम्यत्का रूप बडा हुवा मूल है. धैर्य रूप स्कन्ध है, विनय रूप वेदिका है, तीन लोक में यश रूप स्थूल बडा प्रधान थुड है, पांच महाव्रत रूप विस्तृत शाखा हैं, भावना रूप त्वचा है, धर्म ध्यान व उस के शुभ याग्य रूप पत्र है, व अंकुर हैं, विविध प्रकार के गुण रूप सुगंधी पुष्पों हैं, इन में से सील रूप सुगंध फैल रही है. कर्म के निधन रूप फल है,प्रधान मोक्ष प्राप्ति रूप बीज तथा रस है, जिस प्रकार मेरु पर्वत के ऊपर के भाग में बैडूर्य रत्नमय चूलिका है वैभे ही सब लोक के अग्र भाग में सब से प्रधान मोक्ष है. उस को प्राप्त करने का पथ लोभ का त्याग रूप सब में शिखर समान है. यह निष्पपरिग्रह नायक पंचम अध्ययन
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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