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________________ 176 4. अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋपनी - ॥चतुर्थ-अध्ययनम् // जंबू ! ततोय बंभचेरं उत्तम तवनियम नाण दंसण चरित्त सम्मत्त विणय मूलं, जम्म नियमगुण पहाणजुत्तं,हिमवंत महंत त्तेयवंत,पसत्थ गंभीर थिमियमझं अज्जवसाहुजणा चरियं, मोक्खमग्गविसुद्ध, सिद्धिगइनिलयं सासयमव्यावाहं, मपुणब्भवं पसत्य, सोमं मुभं सिव मयल मक्खयकर,जतिवरसाररक्खियं सुचरियं,सुसमहियं,नवरिं मुणिबरेहि श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि o जम्बू ! अब मैं चौथा संवरद्वार ब्रह्मचर्यका स्वरूप कहता हूं. यह ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय इत्यादि गुणों का मूल है, अहिंसा नियम आदि प्रधानगुण युक्त है जैसे हिमवंत पर्वत सब पर्वतों में वडा और क्षेत्र की मर्यादा करने वाला है वैनी ब्रह्मचर्य व्रत सब व्रतों में प्रधान और सब व्रत की मर्यादा करने वाला है. यह प्रशस्त-प्रसंशा का स्थान है. 'गंभीर, निश्चल, मृदुता, ऋजनः, इत्यादि गुण संपन्न जो साधु हैं उन को आदरने योग्य है मोक्ष पथ विशुद्ध कर्ता है, सिद्धगात का स्थान शाश्वत, अव्यावाध, पुनर्भव रहित, प्रशस्त, सौम्य, शुभ, शिव और अक्षय जिसका दाता है, इन्द्रिय जीतने वाले यतियों ने उसकी रक्षा की है.यह अच्छा आचरने योग्य है,अच्छा | पदेश हुवा है. मुनिवर महापुरुष, धैर्यवतं,शूरवीर,धर्मवंत, और धृतिवंत इत्यादिगुणी विशुद्ध भव्य जनोने इस *कावाक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजा वालाप्रसाइजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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