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________________ 14 अब्भुण्णत्तगत तलिंणतंवसूइ निद्वनखा रोमरहिय,वट्टमठिय, अजहण्ण पसत्थ लक्खण, अकेप्पजंघजुगला, मुणिमिय, मुणिगूढ जाणू, मंसलपसत्थ सबध संधी, कयली खंभातिरेक संठिय निवाण, सुकुमाल मउकोमल अविरला समसहिय वट्टपीवर णिरतगेह, अट्ठावयवीति पट्टसंठिय पसत्था वित्थिण पिहुलसोणि वदणायामप्पमाण दुगुणिय विसाल ममल सुबद्ध जहणवरधारिओ वजविराइयपसत्थलक्षण निरोदरीओ,तिवलिबलियतणु, नमितमज्झिभाओ, उज्झतसमसहिय,जच्चतणुं क सण नद्ध धारक हैं, म रहित जंघ युगल है, अच्छी तरह निमत नमों की जालवाले दोनों घटने हैं. कदली र समान सुकुमाल मृद के मल दानों एकमी मीलती हुई पुष्ट जंघा है, अष्टापद की पिठ समन प्रशस्त विस्तीर्ण यौन है, लम्बे मुख से दुगुनी विशाल मांस युक्त श्रेष्ठ जघन हैं. वज्र समान विराजित प्रशस्त लक्षणवंत कृश उदर है. त्रिवलि संयुक्त पतला नमा हुवा कटिका मध्य भाग है. ऋजू सरल स्वभावसे एकमी बनी हुई, पतली, सतेज, रपणिक, सुललित, सुकुपाल, मृद, कोमल अच्छी रोमराजी है. गंगावत जैसा दक्षिणावर्त है, तरंग कल्लोल, रवि के कीरण, तरुण सूर्य और विकसिन पक्ष कमल समान गंभीर नामि है, 17 अनुन्नत प्रशस्त अच्छी कुक्षि है, शरीर के दोनों तरफ उन्नत पतलि हैं, वे एकेक से परस्पर मिली हुई हैं. अमोलख ऋषिजी. मुनिश्री ** पाचकराजाबहादूर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रमादजी*
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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