SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + + 484 दशमान-प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम-आश्रद्वार 498 संठिया, छायाउजोविअंगमंगा, छबीनिरायंका, कंकगहणा, कवायपरिणामा, सउणिपासपि,तरारुपरिणया, पउम्मुप्पलसरिसगंधसास सुरभिवयणा, अणुलोमवाउवेगा, अवदायनिद्धकालाविग्गह ओण्णयकुच्छी,अमयरसफलाहारी,तिगाउयसमुसिया,तिपलिओवमठि तीया,तिष्णियपलिओवमाई परमाउं पालइत्ता,तेविओवणमंति,मरणधम्म,अवितित्ताकामाणं ७पमदाविय,तेसिं होति,सोमासुजाय सव्वंगसुंदरीओपहाण महिल गुणेहिंसंजत्ता,अतिकंत बिसप्पमाणमउय,सुकुमाल, कुम्मसंठिय सिलिट्ठचलणा उज्जुमउयपीवर सुसाहतंगुलीओ, सुगंधमय श्वासोच्छवास है. तैसे ही सुगंध मय वचन है. अनुकूल अच्छा शरीर का वायुवेग विकसित चिकनी शरीफ की ऊंची कक्ष, अमन समान मिष्ट रमवाले, पुष्पफलका आह र करनेवाले,तीन कोश के ऊंचे शरीर बाले; और तीन पल्योम की स्थितिवाले हैं. वे भी काम भोग में अतृप्त वने हुवे क्षीण होते हैं. अर्थात् मरण धर्म के प्राप्त होते हैं // 7 // यह उत्तर कुरु देव कुरु के युगलिये का वर्णन किया. अब उन की प्रमदाओं स्त्री का वर्णन करते हैं. वे सौम्याकारवाली, सर्वांग सुंदरी और स्त्र के सब गुणों से युक्त है, आतिकांत, प्रमाणोपेत काच्छवे, जैसे सुकोमल सुमंस्थित चरण हैं. सुकुमाल पुष्ट विरल पांव की अंगुलियों, हैं, उन्नत सुखदायी ताम्र वर्णवाले नख हैं. रोम रहित वर्तुलाकार संस्थानमाली पिंडी हैं. उत्कृष्ट लक्षण की + अब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ अध्ययन - - n 1
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy