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________________ चमर पच्छिम सरीर संजाया हैं, अमइलसित कमलविमुकलुजीततरयंत, निरािसहर विमल ससिकिरण सरिस, कलहोय निम्मलाई पवणाहय चवल चलित सलिलय, .. नचियवाये पमारीय, खीरोदग पवर सागर पूरचंवलाह, माणस सरपसरे परच्चिया, वासविसया वेसाहि, कणगगिरी सिहरससियाहि, उवाउप्पायचवल, जतिण सिग्घ वेगाहिं हंसवधूया हैं चेवकलिया, नाणामणि कणगमहरिह तवणिज्जुजल विचित्त 4 दंडाहिं सलिलियाहिं, नरवतिसिरिसमुदयप्पकासणकराहिं, वरपट्टणुग्गयाहिं, समिमर्थ सिंह का मुख पकडकर दो फाड करने वाले, अथवा केशी नामक कंस का मुख फाडने वाले, दर्पत महानाग को नाथने वाले, कृष्ण के पिता के शिशुपाल और अर्जुन नायक विद्याधों को मारकर फेंकने वाले, महाशकुनी और पूतना नामक विद्याधारिनी के वैरी, कंश का मुकुट तोडने वाले, जरासंध के पान का मर्दन करने वाले, बहुत शलाका पुरुष जैसे, चंद्र मंडल समान प्रभावाले, सूर्य के कीरग समान झलझरते, इन का दंड अन्य नहीं रख मके वैसे तेज के धारक, अथवा दंड महिंत छत्र शिर पर धारन करनेवाले, पर्वत में प्रवेश करती हुई गाय के पूंछ मे खींच कर नीकाले हुवे वाल से बनाया हुवा अथवा चमरी गाय के पूछ से बनाया हुवा श्वेन विकसित उज्जल देदीप्यमान कमल समान, शिखर पर रहे हुए 11 चंद्रपा के कारण समान: श्वेत निर्मल चांदी के तार समान, चंचल, चपल, चलते हुए चामरवाले, विस्तृत क्षीर अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनी श्री अमोरख ऋषिजी - * प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600304
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
Publication Year
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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