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________________ दिन नियम भंग के मार्ग में बिलकुल हा प्रवृतन न हुवा चाहिय, फिर दाखय मजहा कि-या अपना सत्य साल आदि नियम-तृत इस जन्म में आग्नेक कुंड का सोतल जल-पानीका सरावर-तलाव बनादताह. मरू जस पहाडा का एक शि ला रुप बनादताह, विक्राल सिंह का हिरण तुल्य बनादताह, सप का पुष्प का माल बनादताह, ओर हलाहल जहर को अमृत बनादेता है. ए सो साक्षी वरोक्त श्लक में राजा-मृतहरो दतह ओर इसहो बात का हबहू चित्र साल आदि तृत धारीयो का बता कर द्रढ बनाने, और अवृतो याँको वृत धारन करान यह “भुवन सुन्दरी सता" का छोटा सा चरित्र बहुत असर कारक जान कर सिकन्द्रा बाद निवासो गुलाब चंदजो गणेशमलजी समदरिया (गणश बोध आदि ग्रन्थक प्रासद्ध कर्ता) और गुप्त पार्थ की इच्छक स्वर्गस्थ लघु भाग्न के स्मणार्थ एक श्राविका बाइने इस ग्रन्थ की १००० प्रत छपवाकर सर्व व्रता यों को अमुल्य समर्पण कर कर्तार्थता समजत है, तपस्वीजो मुनाराज श्रोकेवल ऋषिजी महाराज और बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालखऋषिजी महाराज ( इस ग्रन्थ आदिक चिता ) यहां विराजना हानसे और श्रीमंत ला ला जो श्री नतरामजी राम नरायगजा जवरी जसकी सहायता से आज तक यहां धर्मिक व व्यवहारिक सुधार हुवह, व २०,००० पस्तका अमल्य भेट दीगइ है ओर भी “परमात्म मार्ग दर्शक" जसा बडी पुस्तको लालाजी के तरफ से छपकर प्रसिद्ध होने का विचार हो रहाहै वगेरा कहमको कुछ जरुर नहीं है, फक्त सुचना इसलिये है कि यह अनुकरण अन्य धर्मात्माओं करके धर्म ज्ञान को वृद्धा करंग-तथास्तु चारकमान-दक्षिणहैद्राबाद वृतीयोंकादास श्रीवीरसंवत २४३७-विक्रमार्क १९६८ आषाड रामलाल पन्नालाल कीमती शुक्लपूर्णिमां रामपुरावाला.
SR No.600303
Book TitleBhuvansundari Sati Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherEk Shravika
Publication Year1912
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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