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________________ ७० ज०वि० अति अग्रह कीयो राज लियो नहीं। तब राज मन्त्र दीयो तस सुनारी ॥ धारी मन्त्र भाइ कुशल पूछता । तत्क्षीण उडगया गगन मझारी ॥ स०॥ ५॥ भोगः । वती नगरी में प्राया। जहां महेल है निज इक्त्यारी ॥ एकान्त रही ते मन्त्र ने 1 साद्यो । जैसी विधी यक्ष पास से धारी ॥ स० ॥ ६॥ भोगवति पुरपति की सभा में में । प्राया निमित ज्ञान का धारी ॥ कहे नृपति से सुणो होवो सावध । बात चेतावू एक चमत्कारी ॥ स०७॥ इसी वक्त तुझ पाटवी कुंजर । उन्मत होवे जो । मद छक छारी ॥ तो तुम बात मानो मुझ साची । आज सेही दिन सात मझारी । IN ॥ स०॥ ८ ॥ थारो अायुबल पूर्ण होवेगा । इसमें संशय नहीं लगारी ॥ होण हार टले नहीं टाल्यो । पुक्त देख्यो में ज्ञान लगारी ॥ स०॥ ६॥ हितेच्छु हो । शीघ्र श्रावो यहां । ले निजात्म काज सुधारी ॥ दान धर्म सुकृत्य सु करणी। IN करना सो करले वक्त है यारी ॥ स०॥ १० ॥ इतने में तो सुण्यो सहाय करो शीघ्र । गज मद छक करे जुलम अपारी ॥ सुणपर तीत्या वयण ज्ञानी का।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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