SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Gof करन को । वावनजी बोल्याइ । अहो भूपादि सुणियो सर्वजन । कहूं मुझ मन जे आइ राज ॥ अहो ॥ ३॥ कुरूप कन्या रत्न ग्रहयो । नीति से युक्तो नाहीं । इस- Lal लिये में विद्याबल से, वनु नलकुंवर साइराज ॥ अहो ॥ ४॥ सत्य प्रभाव तुमारो | प्रकास्यूं । मुझ विद्या दरशाइ । सब मिले कुछ कर सको नहीं । पण मेरे से कैसे | Ial थाइ राज ॥ अहो ॥ ५॥ नर देही वांछित फलदाता । जो कर जाने कमाइ । । मूल रूप अब देखो मेरा । सह भ्रमना विरलाइ होराज ॥ अहो ॥६॥ नगर IN] वाहिर बहू लम्बी चौडी। दो एक खाड खिणाइ । वावनो चन्दन वन्ही प्रजालो। शीघ्र करो यह सजाइ होराज ॥ अहो ॥७॥ ज्वाला स्नान किया मुझ तनका । | रूप बने इन्द्रसाइ । फिर तुम बाइ खुशी ते परगूं । इसमें शंका नाही होराज ॥ . अहो ॥ ८॥ सवी कहे यह मरणो चहावे।अग्नि से कौन उवर्याइ । सब समझायो । । एक न मानी । खाइ में अनल दीपाइ होराज ॥ अहो ॥ ६ ॥ न्हाइ धोइ गन्ध । लगाइ । वस्त्र भूषण सजाइ । कुञ्जरा रूढ हो वाजित्र नादे । सब जन से परवर्या
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy