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________________ च०वि०॥ नित्य नवला सुख भोगवे । खान पान ने स्नान । गान तान गुलतान में । मग्न- AM | ता माने राजान ॥४॥ जय जी की आज्ञा मुजब । सह रहे एक चित्त । पुण्यात्म ने कमी किसी । अानन्द मंगल नित्य ॥ ५ ॥ ढाल १२वी ॥ रे लाला विछीयो म- | हारो बाजणो ॥ यह० ॥ रे भाइ कुमरी सुणी यों बारता । तुम पति गया वैश्या | घोररे भाई । मुरछाइ धरणी बढती । यातो भारत करे बहू पेर रे भाई । धिक्क 2 २ व्यश्नी जीवने ॥ टेर ॥१॥रे भाइ शीतल पवन जले करी । ते क्षीण अन्तर : | ने मायरे भाई। सावध हो रोती कहे । हिवे महारी गति सी थायरे भाइ ॥ धि0 क्क ॥२॥रे भाइ वैश्या व्यश्नी मुझपति । पड्यो कामलता ने फन्द रे भाइ। लाज रखी नहीं कुल तणी । थया मोहोदय से अन्ध रे भाइ ॥ धि ॥३॥रे भाइ उर कूटे सिर प्राथड़े वहे नेत्रे नीर परनाल रे भाइ । दासी दोडी गइ भूप | पे । कह्या बाइ का सहू हाल रे भाइ ॥ धि०॥ ४ ॥ रे भाइ नृप शोकातुर थयो । अति । वली लज्जाणोघणोमन रे भार।मुझ जमात नायिका घरे । कुलनिन्द से अब ।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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