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________________ २७ ज०वि० नहीं मिलण को । रखे न्हाखे फंद मांय । विदेश कौतक देखन की । | इच्छा निष्फल थाय ॥ २॥ इम चिन्ती मिल्या विना । चाल्या गगन मझार । कौतक रसिया जीवडा । आलस न करे लगार ॥३॥ उत्तमपुरे उतंग गीरे । गह न वने सर पाज । उदधि आदि स्थान के । विचरे इच्छे त्यांज ॥ ४॥ मणी प्र• भावे पूरवे । मनोर्थ मन का सर्व । पुण्यात्मने पगपगे । वरते सदा ही पर्व ॥५॥ ॐ ॥ ढाल ८.वी ॥ श्रेणिकराय हूंरे अनाथी निग्रंथ ॥ यह ॥ श्रोताजन सुणियों पुण्य विरतंत । जयसेण कुमर पुण्यवन्त ॥ श्रोता ॥ टेर ॥ तिण अवसर मही । IN मंडणोजी । जयपुर नगर प्रधान । गढ मढ मन्दिर मालीयाजी । अलकापुरी ने समान ॥ श्रोता ॥१॥ जेत्रमल नाम शोभतो जी । न्यायी तहां को नरेश । दाता भुक्ता गुणनिलोजी । सुखद सहु ने हमेश ॥ श्रो० ॥ २ ॥ जेत्री आदि । तीनसोजी। अंगना रूप शीलवान । पुत्र पांचसो ऊपरेजी । एक पुत्री गुण | खान ॥ श्रो० ॥३॥ जेवश्री जीती लक्ष्मी जी । रूप कला बुद्धि तेज । शशी
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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