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________________ ज०वि० १५ सावध कर पिता भी । श्लोक रचा तेही वार हो लाल ॥ उ० ॥ १४ ॥ ॥ श्लोक ॥ तुलवलेय सहसे वृथैवं । समं प्रमाणं निखिलान ये हम । गुरूव धस्ताद गुरून दुच्चान। करोष्यशेषान कुदृदृषत्समाश्च ॥ १ ॥ रत्नानि रत्ना करमां वमंस्था । महमि भीर्यद्यपि ते बहुनी । हानिस्तवै वेह गुणैस्त्विमानी। भाविन भूवल्लभ मौलि भांजी ॥ २ ॥ न चैव दोषस्त्व किन्तु कस्या । प्यन्यस्य यः क्षोभ करस्तवापि । गुगोथवाऽयं कथमन्यथास्ति । तेषां गुणैः स्वैर्महिम प्रवृति ॥ ३ ॥ ॥ अस्यार्थ ढाल || होताकडी मकर मानतुं । में करूं सब का तोल हो लाल । ऊंच नीच नी खबर नहीं । तिथी तुझ होसी मोल हो लाल । उ० ॥ १५ ॥ रत्नाकर रत्न करंड को | मत कर मन अभिमान हो लाल । वे रत्न रूठा जो तुझ थकी । तो ही सहसे अपमान हो लाल ॥ उ० ॥ १६ ॥ पण दोष नहीं यह तुझ तणो चहाडिये कीनो क्षोभ हो लाल ॥ गुणी गुण सर्व स्थान पामसी । बधे रत्न की शोभ हो लाल ॥ ३० ॥ १७ ॥ यों कथो तीनों श्लोक को । पत्र चेंटायो द्वार हो
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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