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ज.वि. १७६
सम्यक्त्वोत्सव पढत सुणते । नाशत मिथ्या भरम जी ॥
ऋद्धि सिद्धि सब सुख पावे । अरि होवै नरम जी ॥१॥ श्रीविजय जिनराज गृही रही सम्यक्त्व पसाय केवल वरा । पुण्यात्म गुण पठन श्रवन होत शिव सुख सत्वरा ॥ अमोल ऋषि कहे कृपानाथजी । येही गुण दो सरत्त जो। जय रहो चौ संघकी सदा आनन्द मङ्गल वरतजो ॥२॥
परम पूज्य श्रीकहानजी ऋषिजी महाराज की सम्प्रदाय के बाल ब्रह्मचारी श्रीअमोलक ऋषिजी महाराज रचित सभ्यक्त्वोत्सव-जय विजय चरित्र
का समकिताधिकार नामक उत्तरार्ध खण्ड समाप्तम् ॥
ॐ श्रीसम्यक्त्वोत्सव-जय विजय चरित्र समाप्तम् ॐ