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________________ ज०वि० १७८ जी । होवे सर्व लाभ दातारजी । येही प्राप्त पदार्थ सारजी ॥ श्री ॥ १५ ॥ श्रीवीर निर्वाण संवत्सरा वीते चौबीस सो सप्तबीस । विक्रम उन्नीसस अठावने देश दक्षिण सुपुनीश जी || घोड नदी ग्राम धर्माधीश जी ॥ रहे चतुर मांस सु जगीस जी । शुभ विजय दशमी के दीस जी । यह पूर्ण हुइ मुझ जगीस जी ॥ श्री ॥ १६ ॥ सती शिरोमणी महासती जी । श्री रामकवर जी जान । तस अनुज्ञ ए रच्यो । यह सम्यक्त्वोत्सव मण्ड जी ॥ सम्यक्त्व सब गुणों की खान जी । चिन्तामणी काम कुंभ समान जी || पूरे इच्छा देव इष्ट दान जी। जय जय सदा अमोल धर्मवान जी || श्री समकित उत्सव सुखदा सदा ॥ १७ ॥ ॥ ॥ कळश ॥ हरीगीत छन्द ॥ ॐ नमो सिध सहू । सर्वज्ञ प्रणित जैन धर्म जी ॥ चारों शरण येह सदा मुझने । वांछित सुख देवे परम जी ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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