________________
ज०वि० सामन्त मिल । समजावे बहू भांत ॥ सुज्ञ नृप अवसर लखी। स्वीकारो अवदात । १४४ ॥१॥ पूजा करो फणिन्द्र की। ज्यों होवे उपसर्ग दूर ॥ कारणे को दोषण नहीं।
मानो केण हजूर ॥२॥ कान न धरे नृप विनंती। तब सहू अति अकुलाय ॥ IN रीसा कहे धिक्क हट यह । अवसर औलखो नाय ॥३॥ समज्या समजावा किसो ।
कीजो ऊंडो विमास । निजात्म सज्जन तणो । हाथे मत करो नाशा॥ ४॥ महा। 12 अनर्थ होवे जेह से । ते तजो समझी मन ॥ संसारार्थ साधने । करो नाग पूजन |
॥ ५॥ ॥ ढाल १३ वी ॥ जिनेश्वर मोहणी जीत्याजी ॥ यह ॥राजेश्वर समकित धारी हो । के धन्य जीत्या उपसर्ग भारी हो ॥ टेर ॥ सचीव सज्जन आदि । सह मिली हो । समझाया बहू भांत ॥ नहीं मानी राजिन्द्रजी हो । होणहार सो थात ॥ राजे ॥ १॥ राज का रायन स्वप्न में जी। कहे सुर कोपित होय ॥ हं भी हटीला भूपति । क्यों अभिमान ने घर खोय ॥राजे ॥ भूल्यो सम्यक्त्व भ्रम मे । मुझसे मिथ्यात्वी देव बणाय ॥ सब माने तूं माने नहीं । छक्यो ऋद्धि गर्व के