SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ०वि० ५ सन्मान || १ || सवा नव मास यों वीतीया । शुभ लग्न प्रसंग । जन्म्या दोनों राणी तब । कुंवरजी वरत्या रंग ॥ २ ॥ जन्मोत्सव उमंगे कियो । छोड्या वंदीवान । दुःखी दारिद्री तोषिया । देह वांछित दान || ३ || सज्जन परजन पोष के । गुण निष्पन्न दीयो नाम । जयसे विजयसेणए । नाम समा परिणाम ॥ ४ ॥ उज्वल पक्ष के चन्द्र ज्यों | बढे बुद्धि बल रूप । दृढ धर्मी वय बाल से | देखी अचंभे भूप ॥ ५ ॥ मानो भव पूर्व ही थकी । लाय सम्यक्त्व लार । सु गुरु देव धर्म ज्ञान पे । राखे अति ही प्यार ॥ ६ ॥ न्याय नीति पे प्रीति अति । पाखंड से रहे दूर । पढे कला सर्व शीघ्र ही । हुवे शुभ गुण भरपूर ॥ ७ ॥ जोड़ हरी हलधर समी । खोड न दिखे लगार | मोहनगारा सर्व को । करत सदा चेन चार ॥ ८ ॥ होनहार होयो रहे । कर्म गति है विचित्र । सो सुणिये भव्य दत्त चित्त । वरणुं आगे चरित्र ॥ ६ ॥ ढाल २ री । वीरजी बखाणी हो मुनिश्वर करणी आपरी ॥ यह देशी ॥ ईर्ष बोड़ो हो जोड़ो प्रीति सम्प से । ईर्ष से हानी अनेक । सम्प वहां जम्पज हो
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy