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________________ ज०वि०॥ | रायण राम चार । एक मांडलिक माता पात । सम ॥ १६ ॥ चतुष्पद नृप सिंह शार्दुल । तैसे नराधिप नन्दन होय। शुरवीर अरी गंजना। सज्जन धर्मी मन मोय॥ | । सम ॥ १७॥ हर्षोत्सहा कहे महीपति। विज्ञानी वयण प्रमाण । पीडियों लग खा- । इन खुटे । दी श्राजीवका राजान । सम ॥ १८ ॥ खुशी हुई पण्डित गया। नृप राणी को अर्थ जणाय । गर्भ पाले दोष टालती । रहा नित्यानन्द वृताय। सम ॥ १६ ॥ गर्भ पुण्यात्म पसाय से। राज लक्ष्मी वृद्धि पाय । तीन मांस यों बीतीया । पुण्ये शुभ डोहला प्रगटाय । सम ॥ २० ॥ पुरुष वेश शस्त्र सजी । करी सेना संग परिवार।क्रीड़ा करूं वनने विषे। शरमी अरति धरे ते वार । सम ॥ २१ ॥अंग रIkl क्षक दासी थकी। नृप जाणा डोहल का भेद । दी श्राज्ञा शीघ्र पूरिये । जो उपनी मन उम्मेद । सम॥ २२ ॥ डोहलो पूर्यो हर्ष्या सह । जाण्या उदर से पुण्य हाल । | ऋषि अमोल समकितो त्सवे । ये पभणी पहिली ढाल । सम॥ २३ ॥ दुहा ॥ सुIN पात्र नित्य पोषती।दे चउदह (१४) प्रकारे दान।धर्मोन्नती करती सदा । धर्मात्मा को ।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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