SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० इच्छित हित ॥ ६ ॥ ढाल १ ली। जादूपति जीत्या जी। ये देशी॥ समकित शुद्ध पालोजी । सब दोष दूर निवार । सम० जो वांछित सुख दातार । सम ॥ टेर ॥ लक्ष जोयण गोलकार में यह । जंबु नामें लघु द्वीप ॥ शोभे क्षेत्र गीरि नदी से । प्रणाढी देव महीप ।सम ॥ १॥ भरत क्षेत्रकर्म भूमी को है । पांच सो जोयण मांय। छब्बीस ऊपर छे कला में । षट ६ खंड से दीपाय । सम ॥२॥ साढ़े पचीस देश आर्य में हैं । सोबीर देश सुखकार । नन्दीपुर नगर शिरोमणी है। विश्वानन्द दातार ॥ सम ॥३॥ गढ़ मेहल मन्दिर घरों से । शोभे स्वर्ग समान । धन धान्य ऋद्धि पूर्ण भरी । सदा वरते कल्यान । सम ॥ ४ ॥ स्वचक्री परचक्री को जी। डर नहीं तहां लगार । चोर जार अन्यायी जोतां । मिलेन नगर मझार।सम ॥ ५॥ दुर्भिक्ष दुकाल उस शेहर से जी। दर रहे सदा काल। धर्म पुण्य विद्या बली जी। वसे है नर खुश हाल । सम ॥ ६॥ धर्म सिंह नाम नृपति जी । रूप तेज इन्द्र समान । न्याय नीति धर्मी गुणी। श्ररि तीम्र को भान । सम ॥ ७ ॥ पुत्र परे पाले परजा
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy