________________
| ॐ श्री परमात्मायनमः " श्री सम्यक्त्वोत्सव " जयसेणविजयसेण चरित्र प्रारंभ
॥ दोहा ॥ प्रणमुं जिनेश्वर जग गुरु । दाता सुद्धि बुद्धि वाम । ध्याता पाता निर्मळ मन । थाता चिन्तित काम ॥ १॥ तीर्थेश्वर मुक्तेश्वरु । मुनिश्वर सुरी साध ।। प्रणमुं सिरांजली करी । वक्ष अक्षय समाध॥ २॥ पद्म पंकज गुरु राज पद। मुझ मन भ्रमर लीन । कृपासिंधु विन्दू बुद्धि दे । कीजो मुझ परवीन॥ ३ ॥ संघेश्वर मु.
ख प्रगटी । वागेश्वरी कवी माय । तनुजपर सुनजर कर । दो श्रुति सुखदाय॥ ४ ॥ | सर्व जेष्ठ श्राश्रय गृही। धरी मन हुल्लास । सम्यक्त्वोत्सव का रचुं । शभा समीटर
रास ॥ ५ ॥ समकिती २ बहू कहे । सम्यक्त्व अति दुर्लभ । जोपानी शुरु पाल ही । तास शिव सुख सुलभ ॥६॥धर्म मूल सम्यक्त्व है। महा लाभ दातार । सम्यक्त्व बिन क्रियानिष्फल । मींगणी पर खांड सार ॥ ७॥ विमल सम्यक्त्वी विजय नृप । जैनागमे तला लीन । संकटे सुमेरु ज्यों स्थिर रहे । शुद्ध तत्वार्थ चीन ॥ ८ ॥ तास तणी सुकथा यह । श्रोता सुणो स्थिर चित । गुण ग्रही वर्गों तदा । पावो
-
-