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ज०वि०१६ ॥ चौकस करावी पावी नहीं तुम खबर। भारत धर आज तक रहीया ॥ ___६३ | तुम पुण्यात्म मिल्या चमत्कार कर । हर्षे हीय न समाय भइया ॥ श्रा०॥ २० ॥
। हृदय चम्पी दोनों गर्क भया सुख में । सपूत पेखी सब हर्ष लावे । तो खुशी मा- |
वित्र की कैसी वरणवी॥ ढाल पच्चीस अमोल गावे ॥श्रा०॥ २१ ॥ * ॥ दोहा॥ शरलता पेखी तात की। हर्ष्या दोनों कुमार ॥ चरणे पडी अर्जी करे। हम गुनेगार अपार ॥१॥ नाहक सताया अापने । कर अविनय भरपूर ॥ सब अप- 12 | राध माफी करो । मावित्र मतिये भूर ॥२॥ नृपति कहे संतोष ने । गुन्हो न हुवो | लगार । उज्वाल्यो कुल भाहेरो। गाल्यो अरि अहंकार ॥३॥ सह पहचानी राज | पूत्र । हर्षित हुवा अपार ॥ मंगलतूर बजन लगे। परसरे सबी कुमार ॥४॥ खेचर ।।
भूचर पत भया। विद्या बलीया अपार ॥ ४॥ जीत्या प्रबल सेना ने। हिंसा न कीनी लगार ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल २६ मी ॥ जीवो हो जीवो वीरा ॥ यह० ॥ हा हो । हा सजन सहू घणा जी। प्रेक्षी जय विजय की रिद्धजी ॥ जोयो हो जोयो