SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० ६२ I सेना पर || देख आश्चर्य सर्ब मन जागे ॥ ० ॥ १३ ॥ आये शस्त्र सब संग्रही ने ढग कियो । निशस्त्र हुइ पिता सेना जारे || शूर मगदूर क्या करे शस्त्र विना । थर २ कम्पेत इत उत सौ निहारे ॥ ० ॥ १४ ॥ लेइ गदा दोनों बंधव लगे मारने । सेना निराधार ने भागी त्यारे ॥ धर्म राज लगे भागने कुमर जो लागने । सन्मुख ऊभा कर तारे ॥ ० ॥ १५ ॥ अहो वृद्धि राजीया । बालसे भागीया लाजीया कैसे देंगे जाने ॥ कौन गुने जय विजय अपमानीया । शीघ्र फरमावे | ही म्हाने ॥ ० ॥ १६ ॥ सो बीज वाये सो फल अब आवीये । दोष जणावो कुमर केरो ॥ वि न्याय किये कयो रोषीय पुत्र से । जानवा चावे हमसोइ बेरो । ॥ ० ॥ १७ ॥ यों बचन सुणी चमक्या तब धरा धणी । वैर लेवण येह कुमर श्राया ॥ उमंग्यो प्रेम प्रेक्षी पुत्र या निज । अजान अपराध हुवा कहे क्षमाया ॥ १८ ॥ संक्षेप में बात दर्शाइ वीमा तनी । देवी कुरापात ये घात थाती । तुम गया नन्तरे जाणी खरी चरा सह । तब महारी घणा जली छाती ॥ श्र० ॥ ० ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy