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________________ ख्याल आवे छे. पू. इन्दुरिजीथी मांडीने अन्धकार सुधीना पूज्य पुरुषोए लखेला ग्रन्थो तेमना समयनो निर्णय आपे छे तेमनी परंपरामा थयेल पू. उदयवल्लभमूरिजीना शिष्य बानसागरसूरिए विमलनाथचरित्र रच्युं छे. तेमज " लब्धिसागरमूरिभ्यो नमः " करीने शरुआतमा लख्यु छे ते लब्धिसागरसूरिजीए सं. १५५७ ना वर्षमा संस्कृतमा श्रीपालचरित्र लख्यु छे अने तेमचा शिष्य आ पू. सौभाग्यसागरजी छे जेमणे आ ग्रन्थ संवत् १५७४मां लख्यो छे. आ ग्रन्थना शोधक अनंतहस छे. तेमने इडरमां उपाध्याय पंद आपवामां आव्युं छे, अने तेमणे सं. १५७१मा दश द्रष्टांत चरित्र लखेल छे, एथी पू. सौभाग्यसागरजी बने संशोधक समकालीन छे ते बराबर समजाय छे. तेमज ग्रन्थमा जणावेल पट्टावलीमा सूचवायेल पूर्व सुरिवरोए " सिद्धहेम" लखाव्याना तथा बीजा ग्रन्थो बनाव्यानी पण सविशेष नोंध मले छे. धर्मपरीक्षा* ग्रंथ बेत्रण छे छतां आनी रचना सुंदर, सरल अने हृदयंगम छे ते जोवाथी समजाय तेम छे.. ___सर्व मुमुक्षुओने आ पुस्तक मेट आपवा निर्णय कयों छे कारण के सौ विना परिश्रमे विशेष लाभ उठावे ते ज आशय छे. अने जे प्रमाजे आ पुस्तकनो जेटला प्रमाणमा लाभ उठावशे तेटला प्रमाणमां आ प्रकाशन सफल थयुं मानशुं. पूज्यपाद ब्याख्यानवाचस्पति कविदिवाकर गुरुदेव पन्यासजी श्री रंगविमलजीगणिवरान्तेवासी मुनि कनकविमल * जेनुं भावनगरमां आवेली श्री जैन धर्म प्रसारक सभा तस्फथी भाषाम्तर थयुं छे, CREAMREKAXXXXXXXXXXXXXX881
SR No.600297
Book TitleDharmpariksha Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyasagar Gani, Rangvimal Gani
PublisherMuktivimal Jain Granthmala
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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