________________
॥ ॐ अहं नमः ॥
प्रस्तावना
अनादिकालथी निरन्तर परिवर्तनशील आ असार संसारमां विविध प्रकारनी धर्मोनी प्रवृत्ति दृष्टिगोचर थई रही छे, यद्यपि पूर्वाचार्यांने भव्यात्माओना उद्धारने वास्ते व्या. न्या. काव्य, कोषादि अनेक ग्रन्थरत्न बनाव्या छे, तथा अनेक मव्यजीवोने बोधप्रद चारित्रो बनाव्या छे. तथा संप्रति वर्तमानकालमां पण अनेक ग्रन्थरत्नोनो आविष्कार थई रह्यो छे, एमां पण अमूल्य ग्रन्थरत्नोमांथी एक अमूल्य ग्रन्थ अत्यार सुधी अप्रकाशित रह्यो हतो जेनुं नाम “ श्रीधर्मपरीक्षा कथानक " छे. आ अग्थ अत्यंत अपूर्व छे. मां मनोवेग ने पवनवेग नामना बे मित्रोनो संवाद अतीव रमणीय ने ग्राह्य छे. ज्यारे पवनवेग दैववशात् वीतराग भगवानना धर्मथी बहिर्मुख थई अन्य धर्मावलम्बी थई गयो त्यारे मनोवेगे विद्वानोनी सभामां रूपान्तर करीने पवनवेगने दृष्टांत तथा द्राष्टतद्वारा प्रतिबोध आप्यो, विविध प्रकारनी युक्तियोथी समजावीने वीतराग प्रभुना धर्ममां स्थिर कर्यो, अने पचनयेगे पण पोतानी मूल स्वीकारीने मनोवेगना वचननो स्पीकार कर्यो. तेवी रीते सत्यमार्गना इच्छक भव्यात्माओए मनोवेग तथा पवनवेगना समान सच्चारित्रोनुं पठन-पाठन करीने तथा आ अनुपम ग्रन्थनुं आदि अन्तनुं अवलोकन करीने लाभ उठावे ने सत्यासत्यनुं अन्वेषण करीने वीतराग प्रभुना धर्ममां स्थिर कामना राखे एज सद्ग्रन्थोनो पढवाने सार छे.
ग्रन्थकारना जीवनपरिचय संबंधी विशेष माहिती नथी मलती परंतु तेमनी लखेली पट्टावली उपरथीज तेमना समयनो