SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की લકતામર (0) नमा, (७) ईश्वर, (८) अनंत, (९) अनंगकेतु-कामदेव विजेता, (१०) योगीश्वर, (११) विदितयोग, (१२) भनेक, (१३) एक, (११) ज्ञानमय, (१५) निर्मल मादि ॥२४॥ (१) अव्यय - सर्वकाल में (एक) स्थिर स्वभाव वाले होने से हानि वृद्धि रहित है। (२) विभु - परम ऐश्वर्य से सुशोभित अथवा विभवति कौन्मूलेन समो भवति विभुः कर्म का नाश करने में समर्थ हैं । (३) अचिन्त्य-महान् योगीजन मी भापका पूर्णतः चिन्तन करने में असमर्थ हैं। (१) गवरूप-आपके गुण संख्या रहित हैं । अर्थात् अनन्त हैं अथवा असंख्य हृदयों में विराजमान होने के कारण असंख्य नाम सार्थक है, अथवा गुणों से मौर काल से प्रभु की संख्या नहीं हो सकती मतः असंख्य है। (५) भाय-कोक व्यवहार की आदि में होने से आय हैं अथवा पंच परमेष्ठी में प्रथम होने से आध है अथवा चौबीस तीर्थकरो में प्रथम होने से माद्य है, समी तीर्थकर स स तीर्थ की नादि करने वाले होने से आद्य हैं । (१) ब्रह्मा-हे भगवन् | आप ब्रह्मा कहलाते है। प्रभु धर्म सृष्टि की रचना करते है अथवा प्रभु अनंत आनंद से वृद्धि पाने वाले है। बृन्हति अनन्तानन्देन वर्धते इति ब्रह्मा । (७) ईश्वर- प्रभु तीनों ही लोकों से पूज्य है तथा ज्ञानादि ऐश्वर्य धारण करने वाले है और सर्व देवो के स्वामी है। (८) अनन्त- प्रभु अनन्त ज्ञान-दर्शनमय अनन्त चतुष्क युक्त है तथा मंत मृत्यु से रहित हैं। अनन्त वल का साहचर्य प्राप्त होने से भी अनन्त नाम के योग्य है। (९] अनंगकेतु-कामदेव का नाश करने में केतु समान अर्थात जैसे उदित केतु का तारा जगत का क्षय करता है उसी प्रकार भगवान कामदेव का क्षय करने वाले है । अथवा [१] औदारिक, [२] वैक्रिय, [३] आहारक, [५] तेजस, [५] कार्मणं ये पांचो अंग शरीर के चिह-केतु रहित होने से अनंगकेतु है । [10] योगीश्वर-प्रभु मन, वचन और काया के विजेता, योगीनो के-चार ज्ञानवालो के अथवा ध्यानी के ईश्वर भरवा सयोगी केवळी मान्य होने से ईश्वर है। श्री जिनभद्रगणि क्षमा-श्रमण ने ध्यानशतक के प्रारंभ में श्री महावीर प्रभु की योगीश्वर के रूप में स्तुति की है। kkkkkkkkkkkkkkkkkkkx*******
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy