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________________ INKXXXXM पूतन ४-१५. (नमोऽर्हत्....)ॐ ध्यानाजिनेश! भवतो भविनः क्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशां ब्रजन्ति। ॥२४७॥ કલયાણુ तीव्रानलादुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ॥१५॥ स्वाहा મદિર ભાવાર્થ – ભગવાનના ધ્યાનથી ભગવાન સ્વરૂપ બનાય છે. - હે જિનેશ્વર! જેમ ધાતુઓના પ્રકારે તીવ્ર અગ્નિના મહાય સંગથી પત્થરપણુનો ત્યાગ કરી સુવર્ણપણને પામે છે. તેવી જ રીતે ભવ્ય પ્રાણી ઇલિક ભ્રમરી ન્યાયથી વિધિ * તમારું ધ્યાન ધરવાથી દારિક શરીરને ત્યાગ કરી પરમાત્મ દશાને પામે છે. કનકકુશલ ગણુ વૃત્તિમાં લખે છે કે* हे जिनेश ! भवतो ध्यानाद् भविनां देहं विहाय परमात्मदशां क्षणेन व्रजन्ती- त्यन्वयः। भावार्थ - भगवान का ध्यान करने से भगवान के समान ही वमते हैं - हे जिनेश्वर ! कीट भ्रमर के न्याय से अर्थात् भ्रमर का ध्यान करने से पिल्लू जैसे भ्रमर बन जाता है उसी प्रकार भव्य प्राणीओ आपका ध्यान करने से तत्काल औदारिक आदि सर्व शरीर का त्याग करके सिद्धरुप को प्राप्त करते है। इसका दृष्टान्त यह है कि जिस प्रकार धातु के प्रकार तीव्र अग्नि के संयोग से पाषाणत्व का त्याग करके तत्काल स्वर्णत्व को प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार सिद्धरुप भापके ध्यान से सिद्ध बना जाता है ॥ (१५) * मन्त्र- ॐ ही नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ही नमो उवज्झायाणं, ॐ ही नमो आयरियाणं, . ॐ ही नमो सिद्धाणं, ॐ ही नमो अरिहंताणं, एकाहिक द्वयहिक, चातुर्थिक, महाज्वर * क्रोधज्वर, शोकज्वर, भयज्वर, कामज्वर, कलितरव, महावीरान बंध बंध हाँ ही फट् स्वाहा ॥ * ८५ २५६ । ॐ ही जन्ममरण रोग हराय नमः ॥ १४ । *दि - ॐ ही अर्ह णमो. **EXXXXX**** ******
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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