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________________ શ્રી કલ્યાણ મન્દિર महायन्त्र पून विधिः **** 1 ४८. ( नमोऽर्हत्... ) ॐ हृद्वर्तिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः क्षणेन निविडा अपि कर्मबंधाः । सद्यो भुजङ्गममया इव मध्यभाग - मभ्यागते वन शिखण्डिनि चन्दनस्य ॥ ८ ॥ स्वाहा ભાષા – પ્રભુના કમાનનું માહાત્મ્ય – હે વિભુ ! જેમ વનના માર વનના સધ્ય ભાગમાં આવતાની સાથે તસ્ત જ ચ'દનના ઝાડને વીંટાઈ રહેલા સર્યાં ખસી જાય છે, તેમ ભવ્ય પ્રાણીશાના હૃદયમાં તમે રહે છેતે દૃઢ કે મધના पशु तत्क्षष्णुभां शिथिल यह लय हे भी उन ग-िवृत्तिभांजे छे है- "जीव प्रदेशैः सह कर्मानी वहूत्ययः पिण्ड न्यायेनान्योन्यानु - गमनस्वरूपाः कर्मबन्धाः । भावार्थ - प्रभु के ध्यान का माहात्म्य बताते हैं-हे विभु ! जिस प्रकार वन का मोर जब वन के मध्य भाग में आता है तब चंदन वृक्ष के सर्पमय बंधन तत्काल शिथिल हो जाते हैं उसी प्रकार आप जब हृदय में स्थितआसीन होते हैं तब प्राणियों के दृढ से दृढ कर्म बन्धन भी तत्काल शिथिल हो जाते हैं । (८) भन्त्र - ॐ नमो भगवते पार्श्वतीर्थंकराय हंसः महाहंसः पनहंसः शिवहंसः कोपर्हसः उरगेश हंसः पक्षि महाविष भक्षि हुँ फट् स्वाहा ॥ ૫૦ અક્ષરી । શ્રી પા નાયરવામિના નિર્વિષીદ્મરણ મન્ત્ર છે. - (अश्ष पद्मावती ४६५ ५. १०, ४-२ ) ॐ ह्रीँ कर्माहिबंधमोचनाय श्री जिनाय नमः १७ अक्षरी ॥ ॐ ह्रीं अर्ह णमो उन्हगदहारी ए १३ अक्षरी ॥ भ- ॐ नमो भगवते मम सर्वांग पीडा शांति कुरु कुरु स्वाहा २२ अक्षरी ॥ ॐ... परम.... अवन्ति... पाना २२३ ना अन्ने मन्त्रो बोली (भाभी थाजी) अष्टप्रहारी पूल कप (७) नितु ते रे, बिन तु ते रे, तु मनमें विनशय दुर्भावन ऋद्धि ॥२३२॥
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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