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________________ *॥२२५॥ . भी ક એવા પાર્શ્વનાથ સ્વામીની સ્તુતિ કરવા માટે અતિશય બુદ્ધિશાળી એ મૃતપાત પણ સમર્થ નથી તે પાર્શ્વનાથ स्वामिनी स्तुति हुतार यो छु'. भावार्थ - महिमा के समुद्ररूप जिन पार्श्वनाथ की स्तुति करने के लिये अति तीक्ष्ण । કક્ષાણુ મન્દિર बुद्धिबाग बृहस्पति स्वयं मी समर्थ नहीं। जो पार्श्वनाथ कमठ नामक असुर के गर्व का नाश करने में धूमकेतु-पुच्छल तारे रूप है, मला- उनकी स्तुति करने के लिये मैं तैयार हुआ हूँ। (२) anा पाना २२३ नाबारेम .... पून ॐ.... परम .... अवन्ति.... पाना २२३ नान्ने भोली (गाजी थाणी) 0 yon on५. विधि: વિધા ભડાર એવે, ગુરૂપણ મહિમા, રાશિ એવા તમારા રસ્તાને ગુંથવાને, વિપુલ મતિ છતાં, શકિતશાળી થયે ના; पापान मेवा, सुना, गनातु, छे तीर्थतेनु, रतन धुरमा, निशस ॥२॥ Ad-3 (नमोऽर्हत्....) ॐ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूप-मस्मादृशाः कथमधीश ! भवन्त्यधीशाः। धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदि वा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं किल धर्मरश्मेः ॥३॥ स्वाहा ને ભાવાર્થ – સ્તુતિ કરવાની અશક્યતાનું વર્ણન - હે પ્રભુ! સામાન્યથી પણ તમારું રરૂપ વર્ણવવા માટે મારે જેવા મંદ બુદ્ધિવાળા કેવી રીતે સમર્થ થાય? જેમ દિવસે અંધ એ ધૂવડને બાળક ગમે તેવો બુદ્ધિશાળી હોવા છતાં सूबनु ११३५ जीतनथा. भावार्थ - विशेष प्रकार की स्तुति की तो बात ही नहीं, परन्तु सामान्य स्तुति मी मुझ से नही हो सकती -- ऐसा बताते हैं - हे स्वामी ! सामान्यतः मी आपका स्वरूप कहने के लिये मुझ जैसे मन्दबुद्धि वाले कैसे समर्थ हो सकते है ! अर्थात् नही हो सकते । जिस प्रकार निरन्तर दिन में अंधा होने वाला उालका बच्चा चाहे जितना धृष्ठ अर्थात् बढे प्रयत्न से प्रगल्भ हो तव मी वह किस प्रकार सूर्य का स्वरूप कह सकता है ! अर्थात् नहीं कह सकता (३) ***XXXIXEKXREAXNER
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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