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मी किंनर्यर्चित-नित्यपाद-युगला, संघस्य विघ्नं हियात् ॥ (Ausa) ॐ नमः श्री पद्मावत्यै श्री पार्श्व-॥२१८ या जिन शासनदेव्यै....श्री पद्मावती सायुधा सवाहना सपरिकरा इह श्री कल्याणमन्दिर-महायन्त्र
* पूजन विधिमहोत्सवे अत्र आगच्छ आगच्छ स्वाहा। अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा। अत्र पूजावलि भाब
- गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ (ivil याणा) 0 २dना द्वितीया कराया देवीनु ५४+ - सौ44 तामे a wily as- dal ॥ ५छी शमा भू.पु. नीलाम्बर - परिच्छनाः, पुण्डरिक- समप्रभाः।
धरणेन्द्रप्रियाः सन्तु, जिनस्नाो समाहिताः ॥ ( अनु०४५) ॐ नमः श्री धरणेन्द्र देवीभ्यः श्री
वैरोट्या सायुधा सवाहना सपरिकरा इह श्री कल्याणमन्दिर - महायन्त्र - पूजनविधिमहोत्सवे : अत्र आगच्छ आगच्छ स्वाहा । अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । अत्र पूजावलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ *
an alse fata usavel- Hशत न १२५ xat NIनुसाई मi - यह कल्याणमन्दिर * स्तोत्र सिद्धसेन दिवाकर सूरि द्वारा रचित है। इसकी उत्पत्ति इसप्रकार है - उज्जयिनी नगरी में विक्रम राजा के पुरोहित के मुकुन्द नामक पुत्र था ! उसकी माता का नाम देवसिका था। वह मुकुन्द पंडित एकदिन बाद करने के लिये भरुच जा रहा था। मार्ग में उसे वृद्धवादी सूरि मिले । उनके साथ ग्वालों की मध्यस्थता में बाद किया जिसमें मुकुंद पराजित हुआ। तब सूरि उसे राज्यसभा में ले गए। वहां मी बाद में सूरि ने उसे पराजित किया। इसलिये वह मुकुद अपनी प्रतिज्ञा के
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