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विशेषावश्यक गाथाः
श्रीमलधा-दत्तिव्य दाणमुसमं, देंत दटुं जणमिवि पवत्तं । [जिणभिक्खादाणंपिहु दळु भिक्खा पवत्ता उ]॥ १६४॥
(मडयं मयस्स ) देहो तं मरुदेवीए पढमसिद्धोत्ति । देवेहिं पुरा महियं, झामणया अग्गिसक्कारो ॥ १६४१॥ २६ ॥८॥
P सो जिणदेहादीण, देवेहिं कओ चिया य थूभा य । सद्दो य रुग्णसद्दो, लो(गोऽवि तओ तहा पगओ) ॥ १६४२ ॥ २७ 8 (छेलावणमुक्किट्ठाइ बाल) कीलावणं च सेंटाई । इक्खणियादिमयं वा, पुच्छा पुण किं कहिं कज्ज ॥ १६४३ ॥ २८ है अहव निमिचादीणं, सुहसतियादि सुहदुक्खपुच्छा वा । इच्चेवमाइयाए, उप्पण्णं उसमकालंमि ॥ १६४४ ॥ २९
किंचिच्च भरहकाले, कुलगरकालेवि किंचि उप्पण्णं । पहुणा उ देसियाई, सव्वकलासिप्पकम्माई ॥ १६४५ ॥ भा. ३० ६ उसमचरियाहिगारे, सव्वेसिं जिणवराण सामण्णं । संबोहणादि वोत्तुं, वोच्छिहि पत्तेयमुसभस्स ॥ १६४६ ॥ २०८ ।। | संबोहणपरिच्चाए, पत्तेय उवहिमि य । अन्नलिंगे कुलिंगे य, गामायारपरीसहे ॥ १६४७ ॥ २०९॥
जीवोवलंभे सुतलंभे, पच्चक्खाणे य संजमे । छउमत्थतवोकम्मे, उप्पया णाण संगहे ॥ १६४८ ॥२१॥ त तित्थं गणो गणहरा, धम्मोवायस्स देसगा। परियाय अंतकिरिया, कस्स केण तवेण वा ॥ १६४९ ॥ २११॥
सव्वेवि सयंबुद्धा, लोगतियबोहिया य जीयंति । सव्वेसि परिच्चाओ, संवच्छरियं महादाणं ॥ १६५० ॥ २१२ ॥ | रज्जादिच्चाओविय, पत्तेयं को व केत्तियसमग्गो । को कस्सुवही को वाऽणुण्णाओ केण सीसाणं? ॥ १६५१ ॥ २१३ ॥ है एगो भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहि तिहि सएहिं । भगवपि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहिं निक्खंतो ।। १६५२ ॥ २२४ ॥ Pउग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खत्तियाणं च । चउहिं सहस्सेहुसभो. सेसा साहस्सिपरिवारा ॥ १६५३ ॥ २२५॥
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