SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बढे तिरस्कार पामेली ‘भोगावती नगरी रसातलमां चाली गइ ते युक्त ज थयुं छे. कारण के - ते भोगावती नगरी, मस्तकने विषे स्फुरायमाण उत्तम शेषमणिवाळा एकज भोगीश वडे शोभती छे, ज्यारे आ नगरीमा अनेक भोगीशो एटल समर्थ भोगीओ रहे छे । वळी भोगावती नगरीमा रहेता भोगीश एटले शेषनागना मस्तकने विषे ज रत्न- मणि छे, ज्यारे आ नगरीमां वसता सेंकडो भोगीशाने सर्वांगे रत्नोनां आभूषणो छे । आ प्रमाणे क्षितिप्रतिष्ठित नगरीथी दरेक रीते उतरती भोगावती नगरी लज्जा पामीने रसातलमां चाली गइ छे॥८॥ तत्र श्रीमान् महारूप-निरूपितपुरन्दरः । राजा नाभाकनामाऽभूद्, अभूमिः पापतापयोः ॥ ९ ॥ भावार्थ - ते नगरने विषे समृद्धिमान, पोतानां अलौकिक सौंदर्य बडे दृष्टान्तभूत करेलो छ इन्द्रने जेणे एवो, तथा पाप अने संताप अस्थान नाभाक नामनो राजा हतो ॥ ९ ॥ पुरा कलाकेलिरनङ्गमावं, वधूयेनापि जगाम दिव्यन् । १ भोगावती नामेनी सर्पैनी नगरी पातालमा छे, अने तेमां सपना स्वामी शेषनाग रहे हैं, एवो कविसमय छे। २ भोगी एंटले सर्पों, तेभोनो ईश एटले स्वामी - शेषनाग ३ दुष्ट कार्यों तथा संताप करतो ज नहीं । नामांक | चरित्र.'' ॥ ५ ॥
SR No.600282
Book TitleNabhakraj Charitram
Original Sutra AuthorMerutungsuri
Author
PublisherDosabhai and Karamchand Lalchand
Publication Year
Total Pages108
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy