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भावार्थ-आ सिंहना जीवे मारहमार सोनया देवद्रव्यनो विनाश को हतो, ते कर्मनाः शेषथी ते रेटलीवार नीच भवमा उत्तम थयो छे ॥ १७७॥
प्रतिजन्माऽविद्वेऽस्मिन् , कर्मकार्यकृते सदा।
चटनाभ्यासतोत्रानो, स्वयमेव चटत्यसौ ॥ १७८ ॥ भावार्थ-दरेक जन्ममा मा पर्वतना शिखर उपर वैतकं करवा माटे हमेशां चटवाना अभ्यासी आ भवमा || पण आ गधेडो पर्यत उपर पोतानी मेळे चरी जाय छे ॥१७८ ॥
भत्वेति पतिस्तस्य, सारार्थ कृपया ददौं।
शिक्षा कुम्भकृते सोऽपि, पत्नात्तं पर्यपालयत् ॥ १७९ ॥ भावार्थ---आ प्रमाणे राजाए गपेडातुं वृत्तान्त अषण करी दया आक्वाथी तेनी सारवार माटे कुंभारने | शिखामण आंपी, सारथी कुंभार पण तेनुं सारी रीते पालन करवा लाग्यो. ॥ १७९ ॥
अथासौ भद्रकस्वान्तो, मृत्वा ग्रामे मुरस्थले । ग्रामणीशानुनामाऽभूद्, राज्ञा निवोसितोऽन्यदा ॥ १८ ॥