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रूपी मंडप जेणे एवा समुद्रपाल राजाए ७॥ विविध रंगना तोरणोए करी रमणीय, गगन मंडलमा फरकी रहेली उच्च पताकाओ युक्त, दर्शनीय मनोहर नाटको सहित, अनेक रंगना सुगंधी जलथी सिंचाती पृथ्वीपीठिका उपर स्पष्ट जणाता साथीयाओथी व्याप्त ॥ ७१ ॥ जेनी अंदर रंगबेरंगी विविध प्रकारना किंमती चंदरवा लगावी दीपा छे एवी मालथी भरपूर बनेली दुकानोनी पंक्तियी शोभी रहेल श्रीकांचनपुर नगरमा प्रवेश कर्यो ॥६९ यी ७२॥
राज्यकार्याणि कृत्वाऽह-स्त्रितयेन स सैन्ययुक् । ।२९
ऋद्धया महत्याऽध्यारोहत्, श्रीशत्रुञ्जयपर्वतम् ॥७३॥ ___भावार्थ-त्रण दिवसमां तमाम राज्यकार्य आटोपी, ते समुद्रपाल राजा पोताना सैन्ययुक्त मोटी ऋदि सहित तीर्थाधिराज श्रीशत्रुञ्जय पर्वतपर चड्यो ॥ ७३ ।।
स्नानादिसप्तदशभि-भैदैः सिद्धान्तभाषितैः।
स तत्र सूत्रयामास, पूजामादिजिनेशितुः ॥ ७४ ॥ भावार्थ-ते पर्वत उपर विराजमान प्रभुश्री आदीश्वर जिनेन्द्रनी सिद्धांता मरूपेली स्नात्र विगैरे सत्तरभेदे || पूजा करी ॥ ७४ ॥