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________________ ना. च. |१८| ततो गतो वनं राजा, चतुर्ज्ञान निर्धान् गुरून् । ज्ञात्वा नत्वाऽन्तरायाणां, हेतून् पप्रच्छ भक्तिभाक् ।। ३९ ।। भावार्थ---त्यार बाद राजा पोताना कुटुंब परिवार सहित अत्यंत भक्तिवढे उल्लसित चित्तवान् थइ उद्यानमां गयो, त्यों जइ गुरुमहाराजने विधिपूर्वक वंदन करी तेमने चार ज्ञानना निधि जाणी पोताना अंतरायनुं कारण पूछयुं ॥ ३९ ॥ गुरवो मनसा सीम-न्धरस्वामिजिनं ततः । नत्वाऽप्राक्षुरथ स्वाम्य- प्यूचे तन्मनसाऽखिलम् ॥ ४१ ॥ भावार्थ --त्यार पछी गुरुमहाराजे मन वडे श्रीसीमंधर जिनेन्द्रने नमीने पूछयुं, त्यारे श्री सीमंधरस्वामीए मनयी सर्व धान्त निवेदन क. ॥ ४० ॥ मनः पर्यायतो ज्ञानात्, श्रीयुगन्धरसूरयः । सम्यग् विज्ञाय वृत्तान्तं तं जगुर्भूपतिं प्रति ॥ ४१ ॥ भावार्थ - श्री युगन्धराचार्ये मनःपर्यायज्ञानथी सर्व वृत्तान्त सम्यक प्रकारे जाणीने राजाने जणान्युं के ॥ ४१ ॥
SR No.600282
Book TitleNabhakraj Charitram
Original Sutra AuthorMerutungsuri
Author
PublisherDosabhai and Karamchand Lalchand
Publication Year
Total Pages108
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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