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________________ - - RASRAa w श्रीपुण्डरीकेत्यभिधा चतुर्थी, भविन् ! स्थितेस्तेऽथ भविष्यतीह ॥२१॥ भावार्थ-हे भव्य पुण्डरीक ! आ गिरिनां शत्रुजय, विमलाचल अने सिद्धक्षेत्र ए प्रमाणे त्रण नामे शाश्वतं || नाभाक छ, अने अत्रे तारो निवास थवाथी श्रीपुंडरीक नाम चोधे नाम प्रसिद्ध थशे ॥ २१ ॥ चरित्र. संसेव्य शत्रुञ्जयशैलमेनमनेनसः स्युननु पापिनोऽपि । ॥११॥ भुवोऽनुभावात् किलं मृत्तिकापि, : प्राप्नोति सर्वोत्तमरत्नभावम् ॥ २२ ॥ भावार्थ-आ शत्रुजयगिरि सेवन करवायी पापी पुरुषो पण पोप रहित वाय छ, खरेखर ओं पवित्र तीर्थभूमिना प्रभावथी माठी पण सर्वोत्तम रत्नपणाने प्राप्त करे छे ॥ २२ ।। ये शुद्धभावेन निभालयन्ति, .. . सव्या महातीर्थमिदं कदाचित् ।
SR No.600282
Book TitleNabhakraj Charitram
Original Sutra AuthorMerutungsuri
Author
PublisherDosabhai and Karamchand Lalchand
Publication Year
Total Pages108
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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