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________________ भावार्थ-आवी रीते मार्गमां चालतां पगले पगले अनेक राजाओ द्वाथमा भेटणां लइ नाभाक राजानुं | सन्मान करवा लाग्या, अने तेथी वृद्धि पामती मनोहर लक्ष्मीवाळो राजा पोताना नगरमा आवी पहोंच्यो ॥२७९॥ .. गुरवोऽपि ततो दत्त्वा, श्रीमन्नामाकभृपतेः। सम्यक्त्वमूलश्राडाणु-ब्रतानि व्यहरन भुचि ॥ २८० ॥ भावार्थ-त्यार बाद गुरुमहाराजे नाभाकराजाने सम्यक्त्वमूल श्रावकना अणु व्रत उचरावी शुद्ध श्रावक कर्यो, पछी गुरुमहासजे बीजे स्थळे विहार कर्यो । २८० ॥ अथ देवस्य सान्निध्याद्, वासुदेव इव स्वयम् । भूपालो भरताधेस्य, त्रीणि खण्डान्यसाधयत् ॥ २८१ ॥ भावार्थ-त्यार पछी चन्द्रादित्यदेवनी सहायथी नाभाकराजाए वासुदेवनी पेठे अर्ध भरतना त्रणे खंड | साध्या ॥ २८१॥ भूमिपतिसहस्रापा, षोडशानां च मूर्धनि ।' आज्ञा संस्थाप्य राज्यं स्व-धर्म च समपालयत् ॥ २८२ ॥
SR No.600282
Book TitleNabhakraj Charitram
Original Sutra AuthorMerutungsuri
Author
PublisherDosabhai and Karamchand Lalchand
Publication Year
Total Pages108
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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